"आत्म-चिंतन" - स्व-प्रेरणा जागृत करने हेतु आवश्यक
आत्म-चिंतन का सामान्य शाब्दिक अर्थ है-
मन के विषय में सोचना - विचारना I
Bruce Lee, the world renown martial artist said,
"As you think, so shall you become."
"जैसा आप सोचते हैं वैसा ही आप होंगे"
आत्म-चिंतन को अंग्रेजी के अनेक शब्दों जैसे- Self-Contemplation, Self-Realization, Self Reflection, Self Analysis, Self Expression and Introspection आदि से जाना जा सकता है I
आत्म-चिंतन को गहराई से जानने से पहले चिंतन का अर्थ जान लेते हैं - चिंतन का अर्थ है किसी बात की गहराई में जाना, उसको कई प्रकार से सोचना I
"हम रूप बदल सकते हैं स्वरूप नहीं, रूप बाहर की वस्तु है स्वरूप अन्दर की I"
आचार्य चैतन्य मुनि ने कहा कि, "मनुष्य में ज्ञान की भूख होनी चाहिए I ज्ञान प्राप्ति के लिये सर्वप्रथम मनुष्य को स्वयं का ज्ञान होना चाहिए I स्वयं का ज्ञान आत्म-चिंतन से होता है I"
आत्म निरीक्षण+आत्म परिष्कार (परिशोधन)= आत्म चिंतन
सफलता प्राप्त करने के लिये, किसी कार्य को बेहतर तरीके से करने के लिये आत्म अवलोकन किया जाना आवश्यक है I अपने आपको जान कर स्वयं के किये कार्यों का अवलोकन करके हम स्वयं की कमियों या की गयी गलतियों में सुधार कर सकते हैं I खुद का निरीक्षण तथा उसमें आवश्यक सुधार या परिशोधन करना आत्म-चिंतन के द्वारा ही संभव है I आत्म-चिंतन का उद्देश्य ही खुद को जानकर खुद के व्यवहार या कार्यशैली में परिष्कार करना है I
आमतौर पर आत्म-चिंतन व्यक्ति भूतकाल में किये गए कार्यों के लिये करता है I उन कार्यों का या व्यवहारों का पुनरावलोकन करके उनमें अपेक्षित सुधार या परिवर्तन लाना आत्म-चिंतन का मुख्य उद्देश्य होता है I आत्म-चिंतन भूत, वर्तमान, भविष्य तीनों ही स्थितियों में करना श्रेयस्कर होता है I
आत्म-चिंतन को सरलता से समझने के लिये उदाहरण की सहायता से इसे जानते हैं-
प्रथम उदाहरण- बार-बार परीक्षा में असफल होने पर विद्यार्थी उस परीक्षा को देने का ख्याल छोड़ देते हैं I फेल हो गए, सप्लीमेंट्री आ गयी तो विद्यार्थी हताश होने लगते हैं और पढाई छोड़ने का मन बना लेते हैं I
अब ऐसी स्थिति में आवश्यकता होती है स्वयं के भीतर देखने की, स्वयं की कमियों पर गौर करने की I अब प्रश्न आता है कि उन कमियों को दूर कैसे किया जा सकता है? उनमें हम सुधार कैसे ला सकते हैं? तो-------- हमारी कार्यशैली तथा व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाकर हम इसमें सुधार कर सकते हैं I अगर बार-बार असफलता प्राप्त हो रही है तो इसके लिये आवश्यक है कि हम आत्म-चिंतन के द्वारा खुद को समझें, परखें और सुधार करें I स्वयं की कमियों का गहन चिंतन करके, उनमें सुधार लाकर फिर से सफल प्रयास की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है I
द्वितीय उदाहरण- बॉस की डांट से एक मैनेजर नौकरी छोड़ने का मन बना लेता है I अब यहाँ नौकरी छोड़ने का उसका फैसला उसकी अपरिपक्वता तथा उसके स्वयं में अविश्वास को दिखाता है I अगर वह मैनेजर अपने फैसले पर फिर से गौर करता है... आत्म-चिंतन करता है तो वह क्या पाता है ? वह सोचता है कि उसने ऐसा क्या किया कि बॉस ने ऐसी डांट लगायी I वह उसके पीछे के कारण को समझने की कोशिश करता है I वह अपने वर्तमान में लिये फैसले पर गौर करता है I वह अपने भविष्य के प्रति सोचता है कि यहाँ से नौकरी छोड़ने के बाद हो सकता है उसे तत्काल दूसरी नौकरी नहीं मिले या फिर दूसरी नौकरी में भी ऐसी स्थिति पुन: उसके समक्ष आ सकती है I इस प्रकार वह अपनी एक परिस्थिति के लिये भूत, वर्तमान, भविष्य तीनों के दायरे में आत्म-चिंतन करता है तत्पश्चात अपनी कार्यशैली में सुधार करते हुए, खुद पर विश्वास रखते हुए उसी कार्य को पुन: विश्वास तथा जोश के साथ प्रारम्भ करता है I
उपर्युक्त परिस्थितियों में विद्यार्थी तथा मैनेजर अगर आत्म-चिंतन नहीं करते तो वे क्या कर सकते थे ?
यदि वे अपने फैसले पर पुन: विचार नहीं करते तो हो सकता था विद्यार्थी तनाव तथा अवसाद के फलस्वरूप नकारात्मक कदम उठा लेता I मैनेजर अपने स्थिति विशेष में लिये गए अपनी नौकरी छोड़ने के फैसले को अपनाता I भविष्य में हो सकता है कि ऐसी स्थिति पुन: इनके समक्ष आती तो वे अपने पलायनवादी व्यवहार के चलते फिर से पीछे हटते और जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते I नकारात्मक परिस्थितियों में क्षणभर रूककर आत्म-चिंतन हमें गहरी प्रेरणा देता है, कार्य करने में फिर से नया जोश उत्पन्न करता है, आत्मविश्वास जगाता है I
"आत्म-चेतना जागृत करने के लिये आत्म-चिंतन आवश्यक है"
आत्म-चिंतन के द्वारा हम स्वयं को जान पाते हैं, स्वयं का विश्लेषण कर पाते हैं I हमने किसी बात को कैसे सोचा और समझा, उसे किस प्रकार क्रियान्वित किया, किसी कार्य को करने के लिये या कार्य होने के बाद उसमें सुधार की दृष्टि से अपनाई गयी क्रिया या विचार पद्यति का विश्लेषण यह सब आत्म-चिंतन है I जब हम स्वयं का अवलोकन करते हैं तो अपनी कमियों तथा गलतियों से सीखते हैं तथा कार्य को बेहतर तरीके से करने का प्रयास कर पाते हैं I व्यक्ति बाहरी प्रेरक के स्थान पर बुद्धि, स्वाध्याय, चिंतन तथा आत्म-अवलोकन से जो सीखता है वह ज्ञान कभी भी विस्मृत नहीं होता है I व्यक्ति की इच्छाएं और लालसाएं आकाश के समान अनंत है I सभी इच्छाओं की पूर्ति होना कठिन है I व्यक्ति इच्छाओं को रोकने में अक्षम होने के कारण अपने जीवन के अनेक अच्छे अवसर भी खो देता है I इच्छाओं तथा लालसाओं पर नियंत्रण करना, मन की सोच को बदलना ये सब सिर्फ आत्म-चिंतन के द्वारा ही किया जा सकता है I
आत्म-चिंतन की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? आज के जीवन में हर कोई अपने आप में ही व्यस्त है I हर किसी की दिनचर्या, हर किसी का व्यवहार, दूसरों के साथ बात करने का तरीका, दूसरों के प्रति नजरिया, उन्हें जानना पहचानना सब कुछ परिवर्तित होता जा रहा है I इन सारे परिवर्तनों के पीछे आते हैं हमारे विचार जो हमने स्वयं में धारण किये हुए हैं I हमारा दूसरों के साथ या दूसरों के प्रति हमारा नजरिया पल-पल बदलता क्यों हैं ? इस नजरिये के बदलने के पीछे आते हैं किसी एक व्यक्ति के स्वयं के विचार उसकी धारणाएं कि वह दूसरों के प्रति क्या सोचता है, किस तरह से सोचता है I हम हमारे जीवन में चिंताओं के समूह के द्वारा हमारे मन को, हमारे विचारों को भारी बनाते हैं I जीवन में इन नकारात्मक विचारों के बोझ को उठाये रहते हैं I इन सबके पीछे जो आधार होता है वह होता है व्यक्ति का व्यवहार जिसको कि वह संतुलित व नियंत्रित नहीं कर पा रहा है I अगर हम अपने व्यवहार को, अपने विचारों को संतुलित कर लेते हैं, आत्म-चिंतन कर लेते हैं तो हमारा व्यवहार दूसरों के समक्ष सकारात्मक तथा संतुलित व नियंत्रित रहेगा I किसी के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक दोनों तरह के नजरिये हम बनाये उससे पहले आवश्यकता होती है कि हम स्वयं के विचारों तथा व्यवहार पर मंथन करें अर्थात् आत्म-चिंतन करें I आत्म-चिंतन के द्वारा व्यक्ति स्वयं को जान पाता है, पहचान पाता है I जब तक कोई व्यक्ति स्वयं को नहीं पहचानता, अपने व्यवहार को संतुलित नहीं करता तब तक वह अपने आप को दूसरों के सामने बेहतर तरीके से प्रस्तुत नहीं कर सकता I जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने, सम्पूर्णता लाने के लिये आत्म-चिंतन आवश्यक है I
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