6 या 9...!!! "नजरिया अपना-अपना" 6 or 9 !!! "Nazariya Apna Apna"
6 या 9...!!! "नजरिया अपना-अपना"
6 or 9 !!! "Nazariya Apna Apna"
यह है अपने-अपने तरीके से बात को साबित करने का, सही बताने का फार्मूला Iजो जहाँ से देखता है वही बात उसे सही लगती है I जो आपको 6 दिखता है वही आपके सामने वाले को 9 दिखता है I आप कुछ सोचते हैं और सामने वाला कुछ और I हम सब लगभग रोज ऐसी बातें सुनते हैं कि- अपना नजरिया बदलो... अपनी सोच बदलो... दूसरों से सीखो...! अब बातें तो सभी सही हैं पर हमेशा नहीं I दूसरों से सीखना बहुत अच्छी बात है पर दूसरों से हम सबकुछ नहीं सीख सकते I दूसरों के हिसाब से हर बार अपनी सोच, अपना नजरिया हम नहीं बदल सकते I कैसे अपनाएं सिर्फ वही जो हमेशा दूसरों को सही लगता है !!! हर एक चीज को हर व्यक्ति अपने तरीके से देखता है I आपका अपना नजरिया है तो सामने वाले का उसका अपना I जरुरी नहीं है कि हर बार आप और दूसरा व्यक्ति एक ही तरीके से सोचें I कई बार किसी बात, किसी घटना या किसी परिस्थिति को देखने का, उस पर विचार करने का, उस पर अमल करने का सबका अपना-अपना नजरिया होता है I
उदाहरण
मेरे साथ हुई अभी थोड़े दिन पहले की एक मजेदार घटना बताती हूँ... कॉलोनी के पास दुकान पर जाते समय जैसे ही कॉलोनी का गेट आने वाला था उससे पहले आ गयी एक बिल्ली... बड़ी तेजी से I अब लोग कहते हैं कि काली बिल्ली रास्ता काटे तो अच्छा नहीं होता और यहाँ तो मैं खुद रुक गयी कि पहले बिल्ली चली जाये जिधर उसको जाना है I अब हुआ और मजेदार कि वह बिल्ली भी रुक गयी I तभी एक मोटरसाइकिल आई और मैं और बिल्ली अलग-अलग बिना एक-दूसरे का रास्ता काटे जा पाये I बिल्ली मुझसे डर रही थी और मैं उससे...हम दोनों रुके एक-दूसरे को रास्ता देने के लिये I नजरिया अपना अपना...!होता अक्सर यही है कि हम सब एक-दूसरे का रास्ता काटने में लगे रहते हैं चाहे शब्दों से हो या व्यवहार से I होना यह चाहिए कि जीवन में हमेशा एक-दूसरे को समझने का प्रयास करें, अपनी स्वयं की बनायी हुई कसौटी पर ही हमेशा दूसरों को परखें नहीं I जीवन में आप जिस भी पायदान पर खड़े हों दूसरा व्यक्ति उससे अलग ही होगा I हम ऊपर हो चाहे नीचे, सामने हो या पीछे...जिस भी स्थान पर हैं वहाँ से दूसरे का स्थान अलग ही होगा I हमारे काम अलग होते हैं, जिम्मेदारियाँ अलग होती है, परिस्थितियां अलग होती है I
आपकी नज़र में आप किसी के लिये कितना ही अच्छा कर लें पर फिर भी सामने वाला आपको उसके नजरिये से ही आंकेगा I
मेरे हर कार्यस्थल पर मुझे दोहरी तिहरी जिम्मेदारी हमेशा ही मिली I अब कभी कोई कहता कि क्यों करती हो, मना कर दो..तो कोई कहता कि पेमेंट बढ़वाओ I कभी सुनने मिलता कि इसके क्या है ये तो फ्री है..ऐसी कई बातें I अब आपके कहने से फ्री कैसे...? आज के समय में तो कोई भी फ्री नहीं होता सब अपने किसी ना किसी काम में या विचारों की उधेड़बुन में व्यस्त रहते हैं I मैंने हमेशा वही किया जो मुझे मेरी जिम्मेदारी लगा और परिस्थितिवश मुझे आवश्यक लगा I मेरे इस नजरिये को शुरू से ही घर में प्रोत्साहन मिला I शायद जिम्मेदारीपूर्वक काम करना ही घरवालों से ही सीखा I इन सबमें चाहे आर्थिक नुकसान हुआ हो पर अनुभव ऐसे हुए जो आपको हमेशा आगे बढ़ने को प्रेरित करने वाले रहे I आलोचनाएँ हुई तो ऐसे वरिष्ठ शिक्षकों का सानिध्य और आशीर्वाद भी मिला जो मुझे हरफनमौला कहा करते थे और स्नेह इतना कि जिस दिन स्वेटर नहीं पहना तो बच्चों को घर भेज कर मंगवाते और मुझे डांटते थे I
कई बार ऐसा होता है कि आपको लगता है कि कुछ विशेष नहीं किया आपने पर उसी पर आपको प्रतिक्रिया बहुत अच्छी मिलती है और कभी आप अपनी नज़र में बहुत अच्छा करते हैं पर प्रतिक्रिया उतनी अच्छी नहीं होती I ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सामने वाला आपकी सोच से नहीं उसके स्वयं के सोच और अनुभव से प्रतिक्रिया व्यक्त करता है I
कुछ लोग दिखावा करते हैं, कुछ चापलूसी करते हैं तो कुछ लोग बस अपना काम करके अपनी एक अलग पहचान बना जाते हैं I उन्हें दूसरों के नजरिये में नहीं खुद के नजरिये को सही रखने में दिलचस्पी होती है I
दूसरों के नजरिये से सीखिये और अपने नजरिये को सही रखकर सकारात्मक रूप प्रदान कीजिये I ऐसे ही अनुभवों से व्यक्तित्व निखरता है और हम दूसरों के सामने स्वयं को प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत कर पाते हैं I तो चाहे आप 6 देखे या 9 , अपनी सोच और अपने नजरिये के साथ दूसरों के विचारों को भी सम्मान दें I
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