गुरु की उपाधि किसे दी जाये ?

गुरु की उपाधि किसे दी जाये ?


गुरु की उपाधि किसे दी जाये ?

गुशब्दस्त्वन्धकारः स्यात्‌ रुशब्दस्तन्निरोधकः
अन्धकारनिरोधित्वात्‌ गुरुरित्यभिधीयते॥ 

The syllable gu means darkness, the syllable ru, he who dispels them,
Because of the power to dispel darkness, the guru is thus named.

The guru is seen as the one who "dispels the darkness of ignorance."

गु का अर्थ अन्धकार और रु का अर्थ प्रकाश अर्थात् जो व्यक्ति आपको अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाये वह गुरु होता है I गुरु का अर्थ है "अन्धकार का नाश करने वाला" I

यहाँ अन्धकार का मतलब अंधेरा या प्रकाश ना होना नहीं है बल्कि अन्धकार का तात्पर्य है अज्ञानता I जो हमें अज्ञानता से ज्ञान के मार्ग की ओर ले जाये उसे गुरु कहा गया I अब प्रश्न यह उठता है कि गुरु की उपाधि; गुरु का स्थान किसे दिया जाये? 

माता को प्रथम गुरु की संज्ञा दी जाती है I विद्यालय के शिक्षकों, आध्यात्मिक प्रवचनकर्ता इत्यादि को भी गुरु कहा जाता है I गुरु का अर्थ ब्रह्मज्ञान के मार्गदर्शक से भी लिया जाता है I परन्तु अध्यात्मशास्त्र अथवा धार्मिक विषयों पर प्रवचन देने वाले व्यक्तियों और गुरु में बहुत अंतर होता है I कहते हैं गुरु आत्म विकास तथा परमात्मा की बात करता है I अब क्या सिर्फ वही गुरु है जो हमें परमात्मा का ज्ञान कराये ? स्वामी विवेकानन्द भी वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे I अपने गुरु से उन्होंने सीखा कि सारे जीवों में स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व है; इसलिये मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की सेवा भी की जा सकती है I  मानव जीवन सृष्टि की देन है और सृष्टि परमात्मा द्वारा निर्मित मानी जाती है I गुरु को एक सामान्य व्यक्ति ना मानकर दिव्य मार्गदर्शक ऊर्जा के समान माना जाता था जो कि मानव जाति को उसकी सही प्रकृति की पहचान कराने में सहायक थे I यह दिव्य ऊर्जा भी सभी में नहीं होती I सही रूप में मार्गदर्शन करने में सक्षम ही यह कार्य कर सकता है इसलिये गुरु को ईश्वर समान समझा जाता है I 

 मेरे विचार में गुरु मतलब वह जो हमें आगे की सूझ दे, जिससे हम सीखें I अब सीखने के लिये यदि शिष्य भाव रखा जाये तो गुरु प्रत्येक जगह हैं I माता-पिता से, अध्यापक से, पुस्तक से, मनुष्यों से, पशु-पक्षियों से, प्रकृति से जिनसे भी हम सीखते हैं, उन्हें गुरु ही कहा जायेगा I नवजात शिशु को रोना, हँसना, हाथ-पैर चलाना कोई नहीं सिखाता ये जन्मजात प्रवृत्तियां हैं, प्रकृति की देन है जो हम सभी में विद्यमान रहती है I एक लाइन में वजन उठाये जाती चींटियाँ हमें सिखाती है- एकजुटता, सहयोग की भावना I घोंसला बनाती चिड़िया हमें सिखाती है- धैर्य एवं सहनशीलता I प्रकृति से हम सीखते हैं- कठिन परिस्थितियों में लड़ना, स्थिर रहना, संतुलित व्यवहार करना I गुरु तो सर्वत्र है ; हम किसे गुरु मानें यह हमारे ऊपर निर्भर करता है I हमारे अनुभव हमें सिखाते हैं कि हमें किसी को गुरु बनाने की जरुरत है या नहीं I

एक उदाहरण लेते हैं -


मान लीजिये आप किसी शहर में पहली बार जाते हैं और आपको किसी स्थान विशेष पर पहुँचना है पर आपको रास्ता नहीं मालूम I अब ऐसी स्थिति में हमें ऐसे किसी जानकार की जरुरत होती है जो हमें रास्ता बताये I तब वह जानकार वह रास्ता बताने वाला हमारा गुरु है अब चाहे वह बड़ा हो या बच्चा हो I 
यह आवश्यक नहीं कि ब्रह्मज्ञान करवाने वाला ही गुरु है I गुरु वह है जो हमें प्रेरित करे सीखने के लिये, गुरु वह जो हमें प्रेरणा प्रदान करे आगे बढ़ने के लिये I धार्मिक होना या अध्यात्म में लीन रहना ही गुरु प्राप्ति का साधन नहीं है गुरु तो हमें कहीं भी किसी भी परिस्थिति में मिल जाते हैं जरुरत होती है सिर्फ समझने की I मेरे एक मित्र के द्वारा मुझे श्रीमद् भगवद् गीता पढ़ने का सुझाव दिया गया, एक शिक्षक के द्वारा श्री करणी चरित्र आशीर्वाद स्वरूप दी गयी I अब धार्मिक प्रवृत्ति की ना होने के बाद भी श्रद्धापूर्वक ये दोनों ही मैंने पढ़ी परन्तु पढ़ने के बाद भी श्री कृष्ण या श्री करणी माता को मैं गुरु नहीं बना पाई I तब मेरे गुरु थे मेरे वह शिक्षक, मेरे वह मित्र जिन्होंने मुझे ये दी तथा प्रेरित किया पढ़ने को, कुछ सीखने को, अपनी जड़ों को पहचानने को I इसलिए गुरु सिर्फ वे ही नहीं हैं जो हमें अक्षर ज्ञान कराते हैं बल्कि गुरु वह है जो अक्षर ज्ञान के साथ हमें जीवन ज्ञान भी सिखाते हैं I

गुरु को कैसे खोजें - गुरु को खोजने का सबसे आसान तरीका है कि बिना कोई धारणा बनाये खोजें I यदि आप कोई पूर्व धारणा बनाते हैं तो आप उसे ही खोजते हैं जिसके साथ आप सबसे ज्यादा सुरक्षित तथा आरामदायक महसूस करते हैं I विद्यालय का कोई शिक्षक या शिक्षिका आपको इसलिए पसंद है क्योंकि वह आपके साथ प्यार से बात करते हैं या डांटते नहीं है I आप उन्हीं को अपना आदर्श अपना गुरु मानने लगते हैं I वास्तव में वह गुरु नहीं है; गुरु वह है जो आपको लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर करे, प्रगति पथ पर बढ़ाये I कहते हैं बड़ा आदमी वह है जो अपने पास बैठे हुए को छोटा महसूस ना होने दे I वास्तव में गुरु भी वही है जो बिना अहम् के व्यवहार करे, ज्ञान में दूसरों को अपने से छोटा ना समझे, सदैव प्रेरणादायक व्यवहार करे I

"जो समाज गुरु द्वारा प्रेरित है, वह अधिक वेग से उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है "
 - स्वामी विवेकानन्द



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