मैं ही क्यों हमेशा.....!!! Why Always Me?

Why Always Me? मैं ही क्यों? मेरे साथ ही ऐसा क्यों?


मैं ही क्यों हमेशा.....!!! Why Always Me?

बहुत ही मजेदार हैं ये शब्द हमारे जीवन में "क्यों...?" 
मैं ही क्यों...? मेरे साथ ही क्यों...? मुझे ही क्यों...? जानते हैं इसके पीछे छिपे सवाल तथा उनके जवाब...I
कितने ही सवाल हमारे मन में इस 'क्यों...' के कारण उत्पन्न हो जाते हैं, कई अनसुलझे से ख्याल हमारे इर्द-गिर्द आने लगते हैं I मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है ? वह मुझसे बात नहीं करता तो मैं क्यों करूँ? वह सोशल मीडिया पर मेरी फोटो लाइक नहीं करता तो मैं उसकी फोटो लाइक क्यों करूँ? वे तो कभी हमारे घर नहीं आये तो मैं ही हर बार उनसे मिलने क्यों जाऊँ? ऐसे कई सवाल इस 'मैं क्यों' के कारण मन-मस्तिष्क में उभरते हैं I 'क्यों' के साथ 'मैं' जुड़ जाने से ही उसमें अहम् की भावना आ जाती है, व्यवहार में अहंकार दिखने लगता है I 

जानते हैं इस 'क्यों' के पीछे के सवाल-जवाब कुछ उदाहरणों से -



बच्चों की दृष्टि से देखें तो उन्हें यह लगता है कि हर काम उनसे ही करवाया जाता है चाहे घर का कुछ काम हो या बाहर का I बहुमंजिला मकान है तो ऊपर या नीचे से कुछ सामान लाने का कहते ही बच्चा सोचता है कि मैं ही क्यों जाऊँ हमेशा? 



बच्चे की लम्बाई कम होने पर प्रार्थना सभा में कतार में सबसे आगे खड़ा किया जाता है और लम्बाई ज्यादा होने पर सबसे पीछे I आगे खड़े होने वाले बच्चों को हमेशा सतर्क रहना पड़ता है, सीधे खड़े रहना, पूरी प्रार्थना तेज स्वर में बोलना, सभी अध्यापकों की नज़र में रहना I इन सबसे वे सोचते हैं कि मैं ही क्यों हमेशा आगे खड़ा होऊं ? और पीछे खड़े होने वालों को लगता है कि वे ही पीछे क्यों हमेशा? 



विद्यालय, महाविद्यालय में समूह की बात शिक्षक या प्राचार्य से रखने के लिये लीडर बनाये गये बच्चे को लगता है कि डांट पड़ जाती है मैं ही क्यों जाऊँ हमेशा ? 


घर में महिलाओं को कभी लगता है कि हर काम वे ही करती हैं, हर जिम्मेदारी उन पर है तब आता है मन में 'क्यों' का ख्याल I मैं ही झाड़ू क्यों लगाऊँ? मैं ही क्यों हमेशा बर्तन धोऊँ? मैं ही क्यों खाना बनाऊँ ? बच्चों के लिये मैं ही देर तक क्यों जागूं? सुबह जल्दी मैं ही क्यों उठूँ? मैं ही क्यों हर चीज का त्याग करूँ ? ऐसे कई अनगिनत 'क्यों' पल-पल आते हैं हमारे ख्याल में I

कार्यस्थल पर काम ज्यादा दे दिये जाने पर मन में आता है कि मुझे ही क्यों हर काम करने को कहा जाता है ? लेट आने पर लगता है कि मुझे ही क्यों टोकते हैं हर बार? किसी शिक्षक के नहीं आने पर उनकी कक्षा में दूसरे को भेजने पर उनके मन में आता है कि मेरा ही अरेंजमेंट क्यों लगाते हैं हमेशा ? काम ठीक से ना हो तो आपने अच्छे से क्यों नहीं किया ? 

फिर से बहुत सारे क्यों...? 


अब इस क्यों के पीछे के सारे सवालों के जवाब जानते हैं -   

  • बच्चों को घर के या बाहर के कार्यों के लिये भेजने के पीछे होती है उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की भावना I कभी-कभी घर के किसी सदस्य के शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने की दशा में बच्चों से काम करवाने के पीछे होती है उनमें सहयोग की भावना का विकास करने की मंशाI 
  • घर में महिलाओं से अपेक्षा होती है सभी काम करने की तो उसके पीछे है उनमें जिम्मेदारी की भावना का अधिक होना, पाक कला में निपुण होना, परिवार के सदस्यों को जोड़े रखने का गुण होना I नींद, खाना या और कुछ भी बच्चों के लिये इन सबका त्याग माँ ही कर सकती है और कोई नहीं I 
  • कक्षा लीडर बना कर आगे भेजने के पीछे होती है आपमें छुपी नेतृत्व क्षमता, आपकी बोलने की कला, शिक्षकों का आप पर विश्वास, आपकी अच्छी छवि के कारण रजामंदी मिलने की आशा I 
  • प्रार्थना में या कक्षा में आगे या पीछे बैठाने के पीछे होता है विद्यालय संचालन की सुव्यवस्था को बनाये रखने का भाव, बच्चों में अनुशासन लाने का, समानता लाने का भाव I
  • हर बार आपका ही अरेंजमेंट लगाने के पीछे होता है आपका सरल स्वभाव वाला होना, आपका बच्चों से तथा बच्चों का आपके प्रति स्नेह, प्रबंधकों का आप पर विश्वास, आपकी कक्षा-नियंत्रण क्षमता I 
  • कार्यस्थल पर काम दिये जाने के पीछे होता है आपके कुशल होने का भाव, आपकी श्रेष्ठता I कार्य ना होने या अन्य किसी बात पर टोकने के पीछे मकसद होता है आपकी कुशलता में कमी ना आने पाये, तथा व्यवस्था बनाये रखने का भाव I

इस क्यों का जीवन में प्रभाव भी बहुत पड़ता है I इसी सम्बन्ध में मेरे बचपन की एक घटना बताती हूँ -


तब मैं चौथी या पाँचवीं कक्षा में पढ़ती थी I उस विद्यालय में जब तक पढ़ी  कक्षा की मॉनीटर हर साल मैं ही होती थी I किसी भी विषय की बात हो पाठ मुझसे ही पढ़ने को कहा जाता था I एक बार विज्ञान विषय की अध्यापिका ने पाठ पढ़ने को कहा I पाठ थोड़ा बड़ा था पढ़ते-पढ़ते बीच में एक-दो बार अध्यापिका ने समझाया भी फिर मेरे पास बैठी सहपाठी ने मुझे बैठने को कह कर खुद पढ़ने की इच्छा जताई Iअब सहपाठी को पढ़ने का मौका मिले ऐसी इच्छा भी और बिना अध्यापिका के कहे बैठ कैसे जाऊँ जैसा ख्याल भी I इसी कशमकश में मैंने आगे पढ़ने से मना किया तो अध्यापिका ने फिर से आग्रह किया कि इतना सा ही तो रहा है पढ़ो ! पर मैंने फिर असमर्थता दिखाई तो वह थोड़ा नाराज हुई और मेरे पास बैठी सहपाठी से पढ़ने को कहा I मेरे मन में क्यों तब उत्पन्न हुआ जब सहपाठियों को लगता कि मैं सबकी चहेती हूँ I मेरे कारण उन लोगों को किसी काम में आगे नहीं लाते I अब फिर 'क्यों' आया मन में तब जबकि मैंने तो दूसरों को भी मौका मिले इसलिये कहा पर उसमें भी मुझ पर नाराजगी जाहिर हुई ? तब मुझे लगा कि मुझ पर नाराजगी क्यों ? मुझे ही क्यों पढ़ने को कहते हैं सब हमेशा ? इतना बड़ा पाठ मुझ अकेले से क्यों पढ़वाया ?  फिर से वही क्यों...?
हर विषय में और हर बार मुझसे ही पाठ पढ़वाये जाने के पीछे था मेरा कुशल वक्ता होना, मेरे स्वर, गति व उच्चारण की स्पष्टता, तत्कालीन विद्यालय में मेरे कक्षा में हमेशा प्रथम आने की छवि, मॉनीटर होते हुए मेरा कक्षा नियन्त्रण, अनुशासन I इन सभी गुणों के कारण सभी के ह्रदय में मेरे लिये एक पृथक छवि थी I मुझसे अपेक्षा थी कि मैं अच्छी तरह से ही पढूंगी I परन्तु सहपाठियों को समान अवसर दिलवाने में मुझपर ही नाराजगी जाहिर क्यों हुई ?
मैं क्यों करूँ? मुझे क्या करना है? या फिर मैं नहीं कर सकता कह कर पीछे हटने में कई बार छुपी होती हैं रिश्तों को सुधारने की हजार कोशिशें I कभी होती है खुद को ही हमेशा समर्पित ना करते रहने की भावना तो कभी किसी की सफलता या प्रतिभा के बखान से होती जलन या ईर्ष्या I कभी किसी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण स्वयं की छवि की असुरक्षा की भावना I जहन में कई बार सवाल आ जाता है कि मैं ही क्यों हमेशा हाशिये पर खड़ा कर दिया जाता हूँ ? कभी आपकी परवाह करने की आदत को दखलअंदाजी समझ लिया जाता है तो कभी आपका ज्यादा अच्छा होना, मेहनत व जिम्मेदारी से काम करना भी कई बार लोगों की आँखों में खटकने लगता है I मन से समर्पित होकर काम करने के बाद भी नकारात्मक टिप्पणियों को सुनकर मन कह ही उठता है "आखिर मैं ही क्यों हमेशा ?..."   समझ-समझ का फेर है इसलिये कभी आपकी सोच को दूसरा नहीं समझ पाता है और आप स्वयं भी नहीं समझ पाते कि ऐसा क्या हो गया...क्यों हुआ...? मैं ही क्यों गलत समझा गया ?
'मैं ही क्यों?' से कभी झुंझलाहट का भाव आता है तो कभी स्वयं पर अभिमान का भाव I जीवन में इस 'क्यों' में फंसने की बजाय इससे बाहर निकलने की बहुत आवश्यकता है I

मैं ही क्यों...? 

आप इसलिये क्योंकि आपमें क्षमता है, आपमें आत्मविश्वास है, साहस है, कुशलता है I अब अगर इस 'मैं क्यों' के साथ 'नहीं' जोड़ दें तो इस मैं क्यों नहीं से बहुत से सवालों के जवाब खुद ही सुलझ जायेंगे और आपमें स्वाभिमान के साथ लगनपूर्वक काम करने की इच्छा जागृत होगी I दूसरों के नकारात्मक विचारों, उनकी सोच और व्यवहार से आहत होकर या उनके प्रभाव में आकर आप अपने व्यक्तित्व से दूर हो जाते हैं I नकारात्मक विचारधारा वाले, आपका फायदा उठाने वाले लोग प्रत्येक जगह है I नकारात्मक विचारों को स्वयं पर हावी होने देंगे तो प्रभावशाली व्यक्तित्व को कभी नहीं अपना सकेंगे I नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूर रहें I अपनी सोच को 'मैं क्यों...?' से 'मैं क्यों नहीं...?' तक लाइए I सकारात्मक सोच रखिये I सोचिये मैं क्यों नहीं कर सकता/सकती ? मैं बिलकुल कर सकता/सकती हूँ I मैं इसलिये करता/करती हूँ क्योंकि मुझमें काबिलियत है I मैं क्यों नहीं कर सकता/सकती की इस सोच के साथ उत्पन्न होता है आत्मविश्वास I 
सोचें कि लोग आपको याद क्यों करें? इसका जवाब इस तरह से दें कि आपकी शक्सियत प्रभावशाली है I आप श्रेष्ठ हैं I आपको भूल पाना आसान नहीं क्योंकि आपका व्यक्तित्व प्रेरणादायक है I इन सभी सिद्धांतों पर कार्य करके आप 'मैं ही क्यों' से 'मैं क्यों नहीं' पर शीघ्र आ पायेंगे I स्वयं के उत्थान के लिये, दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ संबंधों को सुधारने के लिये, कार्यस्थल तथा समाज में अपना योगदान देने के लिये "हमेशा मैं क्यों नहीं" पर कार्य करें I

सुनिए इस blog-post को "Prerna The Inspiration" podcast पर 



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