"अनमने होते रिश्ते... कैसे लायें उनमें पुन: ताजगी "
"अनमने होते रिश्ते... कैसे लायें उनमें पुन: ताजगी "
रिश्ता शब्द ही प्रगाढ़ता का प्रतीक है I पीढ़ी दर पीढ़ी रिश्ते ही समाज की बुनियाद है I रिश्तों से ही परिवार, समुदाय, समाज का निर्माण हुआ I विडम्बना यह है कि आज इन्हीं बुनियादी रिश्तों के लिये सभी के पास समय का अभाव है I आधुनिक युग इतना मशीनी होता जा रहा है कि उसको उपयोग में लेने वाला मनुष्य भी मशीनी ही होता जा रहा है I मशीन की ही भांति हमारा दिन भी एक बटन दबाने से शुरू एक बटन दबाने पर बंद जैसा ही हो गया है I सही ही तो है अब नींद किसी चिड़िया के चहचहाने से, मुँह पर पड़ी सूरज की किरणों से नहीं बल्कि मोबाइल में लगे अलार्म से खुलती है I अब नींद परिवार के साथ किस्से-कहानियों के साथ नहीं बल्कि लैपटॉप व मोबाइल देखते-देखते आने लगी है I व्यवसाय, पढाई इत्यादि के कारण समाज संयुक्त से एकल परिवार की ओर जाने लगा है इससे व्यवहार तथा संवेगों में अंतर आने लग गया ISharing is caring, Caring is sharing
अब इस बंधन, इस दबाव से निकला कैसे जाये ? यह एक बड़ा प्रश्न है I
रिश्ते निभाने में मुश्किलें तो आती ही हैं I रिश्ता चाहे कोई भी हो, होता एक-दूसरे की भावनाओं से जुड़ा हुआ ही है I कोशिश यह करें कि किसी की भावनाओं को आपकी वजह से ठेस ना पहुँचे I हमेशा अच्छा होना मुश्किल होता है पर यदि सोचें तो उतना मुश्किल भी नहीं है I कहते हैं कि रिश्तों की डोर बहुत नाजुक होती है, और यदि टूट जाये तो फिर जुड़ती नहीं, जुड़ती है भी तो उसमें गांठ पड़ जाती है I गांठ लगाये ही क्यों...!! एक बार glue से चिपका कर देखिये फिर कैसे गांठ पड़ती है I जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करके देखिये कभी गांठ लगेगी ही नहीं I रिश्तों में कड़वाहट, रिश्ते निभाने में अनमनापन तब आता है जब आप अपने जीवन में तो किसी को हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहते हैं पर दूसरों की जीवनचर्या में उंगली करते रहते हैं I जब आप स्वयं को नहीं बदलना चाहते हैं तो किसी और को भी आपके अनुसार बदलना चाहना आपकी गलती है I सभी की प्रकृति, स्वभाव, व्यवहार एक-दूसरे से अलग होता है I कभी वो आपकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते तो कभी आप उनकी I किसी को प्रेमपूर्वक ही अपना बनाया जा सकता है ना कि अपनी पसन्द उस पर थोपकर I
'कितना टेस्टी बनाया है ! मजा आ गया आज तो यह खाकर' कहकर देखिये I खाना बनाने वाले का दिल जीत लेते हैं आप यह कह कर I आपसे यह सुनकर खाना बनाने वाली आपकी माँ, पत्नी, बहन, या अन्य कोई भी हो अपनी सारी थकान, सारा पसीना भूलकर आन्तरिक ख़ुशी का अनुभव करती हैं I घर की बहू को 'तुम्हारा घर है, तुम्हें ही करना है, तुम्हें ही संभालना है' कहकर देखिये कैसे वह आपके घर की मास्टर शैफ, इंटीनियर डिजाईनर, इवेंट मैनेजर इत्यादि बन जाती है I पुराने दोस्त को फोन करके सिर्फ कहिये 'कैसा है यार' फिर देखिये कैसे वह दिल खोलकर अपनी बातें रख देता है आपके सामने I समय के साथ सास-बहू, देवरानी-जेठानी, ननद-भाभी ऐसे कई रिश्ते हमारे समक्ष होते हैं जो दोहरी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं I अब जब आपके लिये यह रिश्ते नये हैं तो सामने वाले के लिये भी नये है, निभाने में आपको मुश्किल है तो सामने वाला भी आपके साथ असहजता महसूस कर सकता है I सिर्फ अपने नहीं सामने वाले के पहलू से भी कभी सोचकर देखें I परेशानी यह है कि इतनी समझ तब आती है जब खुद उस जगह तक पहुँचते हैं I जब रिश्ते बने हैं तो निभाने की एक कोशिश जरुर कीजिये I घर के बड़ों को बड़े होने का एहसास कराइए चाहे वह जिम्मेदारी उठाने में अक्षम हो तो भी, यह आपका बड़प्पन होगा और संस्कार भी I छोटों को करने दीजिये आपसे कोई भी मांग, उसको पूरा करना भी आपका प्यार है I किसी की ख़ुशी में शामिल होते हैं तो उसकी परेशानी में भी एक बार पूछिये जरुर I
कार्य की अधिकता है, समय ही नहीं मिलता यह कहकर रिश्तों में संवादहीनता बढ़ती जा रही है I आप इसलिये बात नहीं करते क्योंकि आपके अनुसार आपके पास समय नहीं है तो फिर सामने वाला फ्री है यह आप कैसे बता सकते हैं ? हो सकता है उसके अनुसार या फिर वास्तव में वह आपसे ज्यादा व्यस्त हो I अहम् की भावना रिश्तों को ख़त्म कर रही है I कभी ईर्ष्या तो कभी आर्थिक सम्पन्नता के कारण भी रिश्तों में दूरियाँ आ रही हैं I आज के समय में रिश्तों से हर कोई बचने की कोशिश में लगा है I किसी मेहमान का आना, या किसी के यहाँ जाना दोनों ही बोझ लगने लगे हैं I अब नौकरी की व्यस्तता में त्यौहारों पर माता-पिता के पास जाने का समय नहीं है, राखी बांधने बहन आ रही है या नहीं यह पूछने का समय नहीं है, बहन के पास भाई तू कैसा है पूछने का समय नहीं है I इतनी व्यस्तताओं के बीच मोबाईल और लैपटॉप के लिये समय है पर घर के दरवाजे पर जाकर पड़ौसी का हाल पूछने का समय नहीं है I ऐसा सब इसलिए होता है क्योंकि हमने अपने आपको एक दायरे तक सीमित कर लिया है और उसी में कैद रहना चाहते हैं I
याद कीजिये आपका बचपन, याद कीजिये दादा-दादी, नाना-नानी के साथ का समय, याद कीजिये छुट्टियों में मस्ती करते सभी भाई-बहन वाला समय; साथ पढ़ना, लड़ना, डांट खाना..अब नहीं रह गया वह समय, रह गयी हैं सिर्फ यादें... उन यादों को ताज़ा कीजिये I समय निकालकर पुराने रिश्तेदारों, पुराने दोस्तों से बात कीजिये क्योंकि कहीं ना कहीं आपकी सफलता में उनका भी हाथ है, चाहे दो मिनट ही सही पर उनके लिये समय निकालिए जो आपकी ढाल थे, जो आपका सहारा थे, जो आपके मार्गदर्शक थे, जो आपके शुभचिंतक थे I पुराने सहकर्मियों से मिलने का कार्यक्रम बनाइये देखिये फिर कैसे पुरानी सारी यादें आपमें फिर से ताजगी ले आती है I घर में एक समय का खाना सब साथ बैठकर खाइये देखिये कितनी हिदायतें मिलती हैं, कितनी देखभाल आप उनसे पाते हैं I
संकुचित होता रिश्तों का दायरा उसके कारण टूटते रिश्ते..इनका जुड़ाव करना परिवार और समाज को जोड़े रखने के लिये आवश्यक है I आपको क्षति पहुँचाने वाले, अनचाहे रिश्तों को छोड़कर बाकी रिश्तों की तरफ एक कदम बढ़ाइये I अगर आप रिश्तों को टूटता नहीं देखना चाहते तो अपनी तरफ से एक पहल अवश्य करें ताकि मन से आप संतुष्ट रहें I इस लेख की सार्थकता तभी है जब आप इसे अपने जीवन में उतारें, स्वयं को समय दें, दूसरों को समझें, रिश्तों को सहेजें, रिश्तों में मधुरता लायें I
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